व्यक्ति के जीवन मे नैतिक होना और उसका पालन करना अच्छी बात हैं , लेकिन वह सीमा से अधिक होने पर खुद के अंदर गलानी का भाव उत्पन्न करता हैं , और मेरा मानना है इसे नैतिकता का पतन कहते है । ऐसा होना ही व्यक्ति को ओवर जंटिल कहा जाता हैं , जो कि मै नहीं हूँ और कभी जीवन मे बनना भी नहीं चाहता , इस बारे मे आप सब की क्या राय हैं , क्या आप इससे सहमत हैं, या कोई और मंतव्य रखते हैं , कृप्या साझा करे और मेरे ज्ञान मे बढोतरी करे ।
मै ईश्वर से यहीं प्रथाना करता रहता था ........ ईश्वर मुझको फेल ना करना । घी, से मुझको तेल ना करना ।। आस-पड़ोस सब, भला-बुरा कहेंगे । संगी साथी सब दुर रहेंगे ।। फिर से, वहीं क्लास.. वहीं बेच.. वही किताबें.. । फिर से पढना हैं , बही बात ।। ईश्वर मुझको फेल ना करना । घी, से मुझको तेल ना करना ।।
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